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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये


सौन्दर्य, शक्ति, यौवन और धन संसारकी चार दिव्य विभूतियाँ हैं। ईश्वरने शक्तियोंकी सृष्टि इस मन्तव्यसे की है कि इनकी सहायता एवं विवेकशील प्रयोगके द्वारा मानव सुखी रहे और धीर-धीर उत्थान एवं समृद्धिके शिखरपर पहुँच जाय वास्तवमें इन दैवी विभूतियोंके सदुपयोगद्वारा मनुष्य शारीरिक, बौद्धिक मानसिक शक्तियोंका चरम विकास कर सकता है। मानव-व्यक्तित्वके विकासमें पृथक्-पृथक् अपना महत्त्व रखती हैं।

भगवान्के गुण-स्वरूपकी कल्पनामें हम सौन्दर्यशक्ति एवं चिरयौवनको महत्ता प्रदान करते है। हमारी कल्पनामें परमेश्वर सौन्दर्यके पुंज है, शक्तिके अगाध सागर हैं, चिर-युवा है, अक्षय है। लक्ष्मी उनकी चेरी हैं। ये ही गुण मानव-जगत्में हमारी सर्वतोमुखी उन्नतिमें सहायक है। जिन-जिन महापुरुषोंको इन शक्ति-केन्द्रोंका ज्ञान हुआ और जैसे-जैसे उन्होंने इनका विवेकपूर्ण उपयोग किया, वैसे-वैसे उनकी उन्नति होती गयी; किंतु जहाँ इनका दुरुपयोग हुआ, वहीं पतन प्रारम्भ हुआ। वह पतन भी इतना भयंकर हुआ कि अन्तिम सीमातक पहुँच गया और उनका सर्वनाश इतना पूरा हुआ कि बचाव सम्भव न हो सका!

इतिहास इस चिर सत्यका साक्षी है कि सौन्दर्यका दुरुपयोग मानवके रक्तपात, युद्ध, लूट-पाट और संघर्षोंका एक कारण बना है। सुन्दर स्त्रियोंको प्राप्त करने के हेतु विश्वके इतिहासमें युद्धोंके उदाहरणोंकी कमी नहीं है। सुन्दरी सीता रामायणके युद्ध एवं द्रौपदी महाभारतके युद्धका कारण बनी। ट्रामका युद्ध एक सुन्दरीके कारण वर्षों चलता रहा। आजके युगमें भी सुन्दरी स्त्री उत्पातोंका एक कारण मानी गयी है। समाजमें सौन्दर्यके गलत दृष्टिकोणको लेर आये दिन अनेक झगड़े चला करते है।

आजके व्यक्तियोंकी सौन्दर्यभावना केवल ऊपरी चमक-दमकतक ही सीमित रहती है। वे शारीरिक आकर्षणमात्रको ही सौन्दर्यका मापदण्ड मानकर उत्पात करते रहते है। बाह्य आकर्षण बनाये रखनेके हेतु अपार धन व्यय किया जाता है। इस अत्यधिक श्रृंगार-प्रियताने समाजमें वासना-लोलुपताकी तथा व्यर्थके भयानक अपव्ययकी अभिवृद्धि की है। आज भी निरन्तर यह कार्य हो रहा है। उस सौन्दर्यको जो पानीसे धुलकर नष्ट हो जाता है, लोग सर्वोपरि मान बैठे हैं।

युवकोंमें सौन्दर्यभावनाका निन्द्य स्वरूप बुरी तरह फैला हुआ है। कृत्रिम सुन्दरता बनाकर दूसरोंको ठगा जाता है। बनाव-श्रृंगार कर अपनी त्रुटियों या चरित्रगत दुर्बलताओंपर आवरण डाल दिया जाता है। सौन्दर्यका स्वाँग भरनेवाले, सुन्दर आकर्षक, वस्त्र तथा चटकीले-भड़कीले वस्त्र पहिननेवाले व्यक्ति प्रायः चरित्रके दुर्बल, स्वभावके रसिक, वासना-लोलुप और चंचल प्रकृतिके होते है। इनसे न स्वयं अपना भला हो पाता है, न समाजका ही कुछ लाभ होता है। सुन्दर व्यक्ति कोमलताका स्वाँग करते देखे जाते है। किसी भी कष्टसाध्य कार्यमें उनका मन नहीं रमता।

यौवन मनुष्यकी परिपक्वताका समय है। मनुष्यकी सब शक्तियाँ उभरी रहती है। मनमें आशा, शक्ति और उत्साह रहता है। मुँहपर मुस्कराहट खेलती रहती है। यौवनमें मन-उचित-अनुचित, जिस ओर झुक जाता है, जीवनभर उसी ओर झुका रहता है। जब ये आदतें पक जाती हैं, तब मनुष्य उन्हें बदल नहीं पाता।

यौवनमें कामभावना (सेक्स) का उभार आता है। मन वासनाओंसे भर जाता है। यदि युवावस्थामें इन वासनाओंका नियन्त्रण न किया जाय या कार्य, कला, अध्ययन, संगीत या अन्य किसी मार्गद्वारा इन्हें निकलनेका मार्ग प्रदान न किया जाय, तो वे गंदे घृणित मार्गोंसे निकलने लगती है। वासना एक शक्ति है, जिसका दुरुपयोग मनुष्यको पशुकोटिमें ला पटकता है। पतनकी चरम सीमामें पहुँचनेपर उसे ज्ञान होता है कि उसने अपने मनुष्यत्व, पौरुष, वीर्यका कितना नाश किया!

पथभ्रष्ट युवक सबसे दयनीय जीव है। वह उस अमीरकी तरह है, जो जीवन-सम्पदाको मिट्टीमें मिला रहा है। उसे उन सत्-सामर्थ्योंका ज्ञान नहीं जो उसके चरित्रमें छिपे हैं।

शक्तिका दुरुपयोग मनुष्यको राक्षस बना सकता है। रावण जातिका ब्राह्मण, बुद्धिमान् तपस्वी राजा था, किंतु शक्तिका मिथ्या दम्भ उसपर सवार हो गया। पण्डित रावण, राक्षस रावण बन गया। उसकी विवेक-बुद्धि क्षय हो गयी। वासना उत्तेजित हो गयी। वासना तो एक प्रकारकी कभी न बुझनेवाली अग्नि है। जितना उसने वासनाओंकी पूर्ति करनेका प्रयत्न किया, उससे दुगुने वेगसे वह उद्दीप्त हुई। शक्ति उसके पास थी। वासनाकी पूर्तिके लिये रावणने शक्तिका दुरुपयोग किया। अन्तमें अपनी समस्त शक्तियोंके बावजूद रावणका क्षय हो गया। दुर्योधनने शक्तिके दम्भमें अपने सब भाई-बन्धुओंका नाश किया।

मुसलमान शासकोंके असंख्य उदाहरण हमारे सामने हैं। संयमी, कष्ट-सहिष्णु, सतत जाग्रत् रहनेवाले शक्तिसम्पन्न सम्राटोंने बड़े-बड़े राज्योंकी नींव रखी। बाबरने अपनी वीरतासे मुगल साम्राज्यकी नींव पक्की की; किंतु उसके पुत्र धीरे-धीरे असंयमी, विलासी, लोलुप बने। फलतः मुगल साम्राज्यका क्षय हो गया।

शक्तिका सदुपयोग किया जाय, तो वह मानवमात्रके लिए कल्याणकारी संस्थाओं, आश्रमों, नये-नये नियमोंका निर्माण करने, समाज-सेवा तथा नारी जागृतिके पुनीत कार्योंमें प्रयुक्त हो सकता है। दुष्टोंका दमन किया जा सकता है।

शक्तिके दुरुपयोगसे न्यायका गला घुट जाता है, विवेक दब जाता है, मनुष्यको निज-कर्त्तव्यका ज्ञान नहीं रहता, वह बुद्धिभ्रष्टहो जाता है और उसे सत्-असत्का अन्तर प्रतीत नहीं होता।

अंग्रेजीमें एक कहावत है, 'सिंहकी तरह बलवान् बनो, किंतु उस शक्तिका पशुओंकी तरह दुरुपयोग न करो।' तुम्हारी शक्तिसे निर्धनोंको आर्थिक सहायता, निर्बलोंको बल, असहायोंको सहारा मिलना चाहिये। इसीमें शक्तिकी उपयोगिता है।

लक्ष्मी जहाँ सुखकी प्राप्तिका साधन है, वह पथप्रष्ट भी करनेवाली है-

श्रीः सुखस्येह संवासः सा चापि परिपन्थिनी।

अमीर लोगोंके पुत्र उच्छृंखल, अपव्ययी, विलासी और व्यसनी होते है। उनके मनमें धनका मद और प्रमाद इतना अधिक छाया रहता है कि उसके कारण उनकी गुप्त शक्तियाँ विकसित नहीं हो पातीं। वे मनके भीतरी स्तरमें सुप्त पड़ी रहती हैं।

धन आलस्य उत्पन्न कर मनुष्यको निकम्मा, निरुत्साह और निश्चेष्ट बना देता है। उच्च वृत्तियाँ वासनाकी आँधीमें दब जाती हैं। जिस धनसे हम समाज-सेवा, लोकोपकार, दीनोंको प्रोत्साहन प्रदान कर सकते है, वही हमारी वासना-पूर्तिमें स्वाहा होने लगता है। धनकी शक्तिसे मनुष्य उचित-अनुचितकी परवा न कर अपनी इच्छाओंको पूर्ण करना चाहते है। दूसरे व्यक्ति धनका लोभ पाकर पतनके समस्त साधन जुटा देते हैं और भोग-विलासकी घातक निद्रामें मनुष्य सो जाता है। धन वह निद्रा है, जिससे धुँधलेमें ज्ञानकी ज्योति भी क्षीण हो जाती है।

अतः उपर्युक्त चारों पदार्थोंका उपभोग बहुत सोच-विचारकर करना चाहिये। उचित उपयोगसे विष भी अमृतका कार्य करता है, जब कि मूर्खके हाथमें अमृत भी विष बन सकता है।

अपनेसे पूछिये आप इस विषको अमृत बना रहे है, अथवा इस अमृतको विष बनाकर मरनेकी तैयारी कर रहे हैं?

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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